कपास विश्व और भारत की एक बहुत ही महत्तवपूर्ण रेशे वाली और व्यापारिक फसल है। यह देश के उदयोगिक और खेतीबाड़ी क्षेत्रों के वित्तीय विकास में बहुत ही महत्तवपूर्ण स्थान रखती है। कपास कपड़ा उदयोग को प्रारंभिक कच्चा माल उपलब्ध करवाने वाली मुख्य फसल है। कपास भारत के 60 लाख किसानों को रोज़ी-रोटी उपलब्ध करवाती है और कपास के व्यापार से लगभग 40-50 लाख लोगों को रोज़गार मिलता है। कपास की फसल को पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती और पानी का लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा कपास की सिंचाई करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
भारत में कपास की खेती के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। भारत में कपास की खेती मुख्य तौर पर महांराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटका, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, तामिलनाडू और उत्तर प्रदेश राज्यों में बड़े स्तर पर की जाती है। कपास की पैदावार में गुजरात का स्थान सबसे पहले आता है और इसके बाद महांराष्ट्र और फिर पंजाब की बारी आती है। कपास पंजाब की सब से ज्यादा उगाई जाने वाली खरीफ फसल है। राज्य में इसके रेशे की कुल पैदावार लगभग 697 किलो प्रति हैक्टेयर होती है।
कपास यानी नरमा को?भारत में ‘सफेद सोना’ भी कहा जाता?है. लेकिन पिछले साल हरियाणा और पंजाब राज्यों में इस सफेद सोने पर सफेद मक्खी ने जम कर कहर बरपाया था. जिस से यह ‘सफेद सोना’ न रह कर ‘खोटा सोना’ बन गई थी और किसानों को हजारोंलाखों रुपए की चपत लगी थी. सरकार को करोड़ों रुपए मुआवजे के तौर पर जारी करने पड़े थे.
सफेद मक्खी न केवल कपास, बल्कि अन्य फसलों को भी नुकसान पहुँचाने के लिए जानी जाती है। यह दुनिया के शीर्ष दस विनाशकारी कीटों में शामिल है, जो दो हजार से अधिक पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुँचाते हैं और 200 से अधिक पादप वायरसों के वेक्टर के रूप में भी कार्य करते हैं। वर्ष 2015 में सफेद मक्खी के प्रकोप से पंजाब में कपास की दो तिहाई फसल नष्ट हो गई थी, जिसके कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और वे कपास की खेती से मुँह मोड़ने लगे थे।
सफेद मक्खी के बच्चे पीले रंग के और अंडाकार आकार के होते हैं, जब कि मक्खी के शरीर का रंग पीला होता है और एक सफेद मोम जैसे पदार्थ से ढका होता है। यह पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह मक्खी पत्ता मरोड़ बीमारी का भी माध्यम बनती है। इसका हमला ज्यादा होने से पत्तों का झड़ना, टिंडो का झड़ना और टिंडों का पूरी तरह से ना खिलना आदि आम तौर पर देखा जा सकता है। इससे पौधों पर फंगस बन जाती है और पौधे बीमार और काले दिखाई देते हैं।
बचाव के उपाय : एक ही खेत में बार बार कपास ना उगाएं। फसली चक्र के तौर पर बाजरा, रागी, मक्की आदि फसलें अपनायें। फसल के अनआवश्यक विकास को रोकने के लिए नाइट्रोजन का अनआवश्यक प्रयोग ना करें। फसल को समय सिर बोयें। खेत को साफ रखें। कपास की फसल के साथ बैंगन, भिंडी, टमाटर, तंबाकू और सूरजमुखी की फसल ना उगायें। सफेद मक्खी पर नज़र रखने के लिए पीले चिपकने वाले कार्ड 2 प्रति एकड़ लगाएं।
कीटनाशकों का प्रयोग : सफेद मच्छर/मक्खी के नियंत्रण हेतु सुमीटोमो केमिकल का “लेनो” 500 ML प्रति एकड़ के हिसाब से 1500 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें। लेनो का स्प्रे करने के 5 दिन के अंदर ही आपको अपने कपास के खेत में उसका असर देखने को मिलेगा। ज्यादा अच्छे रिजल्ट के लिए लेनो के 2 स्प्रे 15 दिन के अंतराल पर करें। लेना देता है सफेद मच्छर पर सबसे अच्छा और लम्बा कण्ट्रोल और ये कपास की फसल को काली या पिली नहीं पड़ने देता और उसकी हरयाली बनाये रखता है। कपास में सफेद मच्छर क्यों इतना हानिकारक है एवं लेनो के फायदे और उपयोग के तरीके के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारी ये वीडियो जरूर देखें।
किसानों के अनुभव जानने के लिए निचे दिए गए वीडियो जरूर देखें।